दिलासा

"मैं तुम्हें नानी के घर पे छोड़ दूंगा । वहाँ अच्छे से रहना । ठीक है ? ", बाप बच्चे को समझा रहा था । "मगर मुझे तो आपके साथ रहना है । मुझे नहीं रहना वहाँ ।" बच्चा शिकायत भरे लहजे में कह रहा था । "बेटा वहाँ नानी तुम्हें नहला दिया करेंगी ,कपड़े बदला देंगी । और वहाँ तुम्हारी मौसी भी तो हैं । तुम अच्छे से रहोगे वहाँ । मैं कैसे तुम्हें देख पाऊँगा यहाँ । और फिर मैं आया करूंगा न मिलने हफ़्ता दस दिन में । तुम बिलकुल परेशान मत होना । मुझे याद करके रोना मत । नहीं तो नानी भी परेशान हो जाएंगी । " ये समझाते हुये बाप की आँखों में करुणा और प्रेम के मिले जुले भाव थे । वो कभी अपने बच्चे के सर पर हाथ फेरता, कभी उसके माथे को चूमता । बस जाम की वजह से धीरे धीरे बढ़ रही थी । गाड़ियों के शोर में बच्चे की सुगबुगाहट खो गयी थी ।

क्या कारण हो सकता है इस सब का ? कहीं बच्चे की माँ को तो कुछ नहीं हो गया ? नहीं नहीं भगवान न करे ऐसा हो । मैं विचारों की ऊहा पोह में उलझा उन दोनों की ओर देखे जा रहा था । बस कभी रुक जाती थी कभी तेज़ चलने लगती थी । विचार कठोर होते जा रहा था । मन रूआँसा सा हो गया था । कुछ पुरानी बातें दिमाग़ में घूमे जा रही थीं । "नारियल गिरि ले लो !!"नारीयल की गिरि बेचने वाला बस में चढ़ता है । बच्चा और बाप दोनों उसकी ओर देखते हैं और फिर दोनों एक दूसरे की ओर देखते हैं । बच्चा आँखों में ही अपनी इच्छा बताता है । बाप नारियल वाले की ओर देखता है और फिर अपनी जेब में हाथ डालता है । किन्तु तुरंत ही हाथ निकाल लेता है । असमर्थता के भाव उसके चेहरे पर उभर आते हैं । आँखों में मजबूरी भर आती है । इतने में बस चल पड़ती है । बाहर गुब्बारे वाला बच्चे का ध्यान बटाता है । बाप की आँखों में थोड़ी सी राहत दिखाई देती है । किन्तु मेरा मन तो बोझिल होता जा रहा था । आखिरकार हुआ क्या है इसके साथ । पूछने की हिम्मत नहीं थी । बस अनुमान ही लगाए जा रहा था। और उधर बाप बच्चे को घड़ी घड़ी समझा रहा था । दिलासा दे रहा था । मेरा स्टॉप निकट आ रहा था । मन की स्थिति वही थी। असमंजस ही असमंजस । बस रुकती है और मैं अपने स्टाप पर उतार जाता हूँ । किन्तु मन तो वहीं रह गया था । मेरे  प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला था । आखिर क्या हुआ होगा उसके साथ ? 

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