आख़िरी मुलाक़ात


- तुम लव स्टोरीज़ क्यूँ पढ़ते हो इतना ? और शाएरी में भी तुम्हें रोमांटिक्स ज़्यादा पसंद हैं ?
अपने मासूम अंदाज़ में उसने पूछा था और सवाल सुनकर मेरी आँखों में चमक आ गयी थी और होंटों पर हल्की सी मुस्कान।
- हम्म.... हम उन्हीं चीजों के बारें में ज़्यादा बात करना पसंद करते हैं जो हुमें मिल न पायी हों या मिलती न हों।
मैंने थोड़ा सीरियस होते हुये जवाब दिया था । जिसे सुनकर वो थोड़ी उदास सी हो गयी थी । वो शायद मेरी अतीत के बारे में सोचने लगी थी या अपनी वर्तमान के बारें में जिसमें वो मेरे साथ थी, मुझसे मोहब्बत करती थी । उसे शायद लगा हो की मैं उसकी मोहब्बत पे शक कर रहा हूँ। फिर मैंने बात बदलते हुए उसे अपनी पसंद का शेर सुनाने के लिए कहा था ।
- शेर? मुझे तो तुम्हारे ही शेर पसंद हैं ।
उसने फ्लर्ट करने के अंदाज़ में कहा था ।
- सुनाओं न प्लीज़!
मैं झुँझलाते हुए कहा था
- अच्छा! रुको  एक मिनट याद कर लेने दो
और वो कुछ देर के लिए सोच में गुम हो गयी थी । इस समय उसका मासूम चेहरा मेरी निगाहों में था ।
- अरे यार ! नहीं याद आ रहा कोई
फिर कुछ देर बाद उसने परेशान होते हुए कहा था ।
-तुम्ही कोई शेर सुना दो न
उसने मुझे फरमाइशी अंदाज़ में कहा था ।
- "ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
    दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में"
मैंने उसे जौन एलिया का शेर सुनाया था। जिसे सुनकर वो चिढ़ गयी थी ।
- हाँ हाँ ! ठीक है ! तो चले जाओ न जब दिल नहीं लग रहा ।
उसने चिढ़ते हुए बचकाने अंदाज़ में कहा था । लेकिन जाने  वाला तो कोई और था । समय ने हमारी कहानी कुछ और  ही तरह से लिखी थी । दिल्ली में भीषण डेंगु फैल रहा था । वो कुछ दिन से कॉलेज नहीं आ रही थी । मैंने पूछा तो उसने कहा कि हल्का सा बुखार है । कुछ दिन में आ जाएगी । मैंने भी मान लिया था । मगर आगे कुछ और ही होने वाला था । मैंने कैंटीन के पास बैठा चाय पी रहा था कि रोहन का फ़ोन आया
- आमिर! यार सुनैना एम्स में एड्मिट है !!
ये सुनकर मैं घबरा गया था
- क्या बोल रहा है यार?
मैं उसकी बात पे यक़ीन नहीं कर पा रहा था
- यार उसे डेंगु हो गया है और उसकी platelets बहुत कम हो गयी हैं । वो सीरीयस है यार
रोहन उसके पड़ोस में ही रहता था । उसकी बात सुनकर दिल घबराने लगा था । अजीब सी हालत हो गयी थी । आँखों के आगे सुनैना का मासूम चेहरा घूमे जा रहा था । हॉस्पिटल जाना था मगर जाने की हिम्मत नहीं थी । मैं कैसे उसका मासूम चेहरा हॉस्पिटल के बेड पर देखता । और फिर किस रिश्ते से जाता । वहाँ उसके परीवार के लोग भी होते । उनसे क्या कहता कि हमारा क्या रिश्ता है । दिल इसी कशमकश में डूबा जा रहा था । रोहन को दो तीन बार फ़ोन किया मगर उसका फ़ोन बंद आ रहा था । इसी उलझन में शाम हो गयी थी । खाना भी नहीं खाया गया था । दिन भर बस उसी का चेहरा रह रह कर याद आ रहा था । फिर अचानक फ़ोने बजा । देखा तो रोहन कि काल थी।
- यार आमिर!! सु... सुनैना
रोहन रुंधी हुई आवाज़ में कुछ कहना चाह रहा था ।
- क्या हुआ यार ! बोल न प्लीज़ !
मैंने चीख़ते हुए कहा था ।
- आमिर! सुनैना चली गयी
ये कहकर उसने फ़ोन काट दिया था । मेरा दिल बैठ गया था । जैसे दो तीन धड़कनें एक साथ स्किप करदी हों । कुछ समझ नहीं आ रहा था । आँखों में आँसू छलक आए थे । और सुनैना की धुंधली धुंधली तस्वीर आंसुओं से भरी आँखों के आगे घूम रही थी । आवाज़ कानों में गूंज रही थी । वो हमारी आख़िरी
मुलाक़ात थी । ...

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