नेहरू प्लेस

हार्न की तेज़ आवाज़ रुकी तो किसी की  मीठी सी  बोहोत धीमी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी । "एक्स्क्युज़ मीं! आप बता सकते हैं यहाँ से नेहरु प्लेस कैसे जाना है?" सवाल आसान था मगर सवाल पूछने वाला इतना मुश्किल कि एकदम से जवाब नहीं दे पाया और कुछ लम्हों तक उसके मासूम चेहरे को देखता रह गया। वो भी हैरान थी । थोड़ा uncomfortable लगी तो मेरी नज़रे सकपकाईं और मैंने तुरंत हकलाने के क़रीब लहजे में जवाब दिया, "अ....आप यहाँ से ग्रामीण सेवा या कोई भी बस लेकर जुलैन रेड लाइट उतर जाइए और वहाँ से 534 पकड़ लीजे जो आपको सीधे नहरु प्लेस पहुंचादेगी" "ओके थैंक यू " कहकर उसने नज़र बचा ली ।
उसका सवाला तो पूरा हो चुका था । मगर मेरी नज़रें तो अब भी सावली थीं। वो उलझन में थी । उसकी नज़रें बस आने के रास्ते की तरफ़ टिकी थीं । कोई भी गाड़ी नहीं आ रही थी । कभी वो अपनी चेन वाली हाथ घड़ी की तरफ़ देखती और कभी सड़क के इधर उधर नज़र दौड़ाती । वो इस उलझन में थी कि कोई गाड़ी जल्दी से आ जाए । और इधर मेरा हाल ये थे कि  जैसे कोई बच्चा मासूमियत भरे लहजे में दुआएं कर रहा हो कि काश कुछ देर लिए कोई भी गाड़ी नहीं ना आए । सवाल पूछने के बाद उसने शायद एक बार भी मेरी तरफ़ नहीं देखा था । इधर मैं था कि अब कुछ और नज़र ही नहीं आ रहा था । सड़क पर दौड़ती गाड़ियों का शोर भी सुनाई नहीं दे रहा था । होश गुम हो गए थे ।  वो  घड़ी घड़ी  उलझन में अपनी उंगली पर अपनी एक ज़ुल्फ़ को , जो शायद उसने यूंही खुली छोड़ दी थी, बल दे रही थी । जैसे जैसे उसकी ज़ुल्फ़ उसकी उंगली पर उलझती जाती थी वैसे वैसे मेरा दिल भी । बल पड़ गए थे निगाहों में । उसका इंतज़ार और उलझन दोनों बढ़ रहे थे । इधर मैं था कि बिलकुल अंजान । शायद वक़्त भी रुक सा गया था । शायद किसी ने मेरे लिए सड़कें जाम करदी थी कि वो जा न सके  और मैं उसे घंटों यूंही देखता रहूँ ।
अचानक हार्न की कर्कश आवाज़ कानों में पड़ी  । अब उसके चहरे पर सुकून था और मेरी उलझन बढ़ रही थी । जो वक़्त अभी देर पहले ठहर सा गया था वो अब तेज़ रफ़्तार घोड़े से भी ज़्यादा तेज़ भाग रहा था । दिल की धड़कन बढ़ सी गयी थी । मैं ये भी भूल गया था कि मुझे कौन सी बस में जाना था । ये भी याद नहीं कि वो मेरी ही बस थी । भीड़ थी । बस के  दरवाज़े पर लोग चढ़ने का इंतज़ार कर रहे थे। वो अपना हैंडबैग संभालें चढ़ने की कोशिश कर रही थी । मेरी दुआ अपना असर खो रही थी । वो बस जाने ही वाली थी । मेरी निगाहें जम गयी थीं । पथराई सी । एक अजब से नाउम्मीदी झलक रही थी । शायद वो जाते हुये ही पलट कर देख ले । बस चली तो धड़कन और तेज़ हुई । "प्लीज़ एक बार तो देखो" मन में बड़बड़ाया । बस तेज़ हो गयी । उसने नहीं देखा । इतनी बेरुखी । दिल बैठ गया और मैं भी ।

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