मुझ से मैं

हर बात में टांग अड़ाते हो
तुम खुद को ज्यादा बनते हो
ये ज्ञान व्यान तुम तो छोड़ो
तुम तो उल्लू के चरखे हो 


ये धर्म वर्म पे तंज़ वंज़
क्यूँ इतना काबिल बनते हो?
ये बातें वातें बड़ों की हैं
और तुम बुद्धि से बच्चे हो

भगवान खुदा को मानो तो?
विज्ञान की बातें जानो तो?
क्या खुद से भी कुछ सोचा है ?
जो पढ़ते हो बक देते हो

क्या बुद्धिजीवी कहलाना है?
पत्थर पे कलम चलाना है ?
क्या सब कुछ दिल से कहते हो ?
या यूंही सच्चे बनते हो ?

तुम बनने आए कवि बड़े
अब तक हो एक ही जगह खड़े
जो नहीं हो वैसा बनना क्या
तुम जैसे भी हो अच्छे हो !

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