एक्स्क्यूज़ मी अंकल!

आदमी के दिल और बरगद के जिन का कोई भरोसा नहीं। कभी भी किसी पर भी आ सकता है । हमारे साथ भी कुछ यूं ही हुआ। बात है 28 फरवरी सन 2017 की शाम की। रोज़ की तरह कैंटीन में खाना खाने के बाद चाय की हड़क लगी तो राहुल भय्या के स्टॉल की तरफ़ बढ़ गए। अपनी खादी की जवाहर कट के दोनों चाकों को दुरुस्त करते हुए । एक और पौन नंबर की ऐनक आँखों पर सही बिठाते चलता जा रहा था कि सामने से एक दोशीज़ा को आते हुए देखा। देखते ही दिल धक से होकर रह गया। कोई इतना मासूम और खूबसूरत चेहरा वाइज़ के सामने भी आ जाए तो ईमान भूल जाए। मेरी तो धड़कन ही क़ाबू में नहीं आ रही थी । सोने पर सुहागा ये हुआ कि मेरी उस दोशीज़ा से नज़र टकरा गयी । अब तो दिल क़ाबू में रखना ऐसा हो गया था जैसे लंगर में बिरयानी बाटनी पड़ गयी हो । मेरी चाल हल्की हुई । उसके क़दम तेज़ हुए । उसका अंदाज़ ऐसा था जैसे मेरे ही पास आ रही है । जैसे जैसे उसके क़दम बढ़ रहे थे मेरी हार्टबीट बढ़ रही थी । फिर वही हुआ कि जो होना था । वो मेरी क़रीब आई रुकी और अपने मासूम लबों को जुंबिश देते हुए बोली, " एक्स्क्यूज़ मी अंकल! ये कम्प्युटर साइंस डिपार्टमेन्ट किधर है?"

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