आधी रात ढल चुकी है । बारिश ने मौसम को सर्द कर दिया है । किवाड़ों से छन छन के हवा के बारीक लहरें कमरे में घुसी चली आ रही हैं । टांगों पर पड़े कंबल ने सर्दी के एहसास को थोड़ा कम कर दिया है । बाहर गाड़ियों का शोर अब भी सुनाई दे रहा है । मगर ज़्यादातर गाड़ियाँ वापस लौट रही हैं । स्टीरियो पर धीमी आवाज़ में अमीर खुसरो की ख़बरम रसीदा बज रही है। माहौल की सर्दी और जज़्बात के गर्मी का मिला जुला असर मुझे घेरे हुए है । अभी यादों के दरीचे के खुलने की आहट हुई । उसकी याद अंदर दाख़िल हुई है । सोच रहा हूँ वो अब क्या कर रही होगी । शायद अपने मखमली बिस्तर पर लेटी मेरे बारे में सोच रही हो । तकिये को अपने सीने के नीचे दबाए बिस्तर पर औंधे लेटी हुई अपने दायें गाल पर ज़ुल्फों को बिखेरे हुए मेरे बारे में सोच रही होगी । या शायद कोई नावेल पढ़ रही होगी । उसे किताबों से बड़ी मुहब्बत है । मैंने जब पहली बार उसे देखा था तब भी उसके हाथ में किताब थी । और आखरी बार जब हमनें एक दूसरे को देखा था तब भी उसके हाथों में किताब थी ।
अलविदा कहने के बाद वो मुड़कर चलने लगी थी । बहुत दूर तक वो मुझे देखती रही । मैं भी उसे देखता रहा । दोनों एक दूसरे को देखते रहे । एक शेर याद आ गया । कुछ इस तरह था .....
उसे फराज़ अगर ग़म न था बिछड्ने का
तो क्यूँ वो दूर तलक देखता रहा मुझको
मैं भी यही सोचा करता हूँ । उसने बार बार पलट के तो देखा मगर एक बार भी अपने होंटों को नहीं हिलाया। ग़म तो ये है कि उसने कोई शिकवा कोई शिकायत भी नहीं की। मेरे होंट भी जम से गए थे । कितनी अनकही बातों का बोझ अपने होंटों पर महसूस करता हूँ । वो बातें दिल से होंटों तक आ गयी थीं । मगर रुँधे हुए गले इतना सहारा नहीं दिया कि उन बातों के आवाज़ की लहरों पर बिठाकर उसके कानों तक पहुंचा देता । ख़ैर... फिर इन पुरानी बातों को दोहराने से क्या हासिल । वो तो अब जा चुकी है । किसी दूसरे शहर । शायद वो अब किसी और की ज़िंदगी किसी को और की ख़ुशी हो । या शायद नहीं । मुझे तो इतना भी नहीं मालूम ।
गर्द में अट रहे हैं एहसासात
धीरे धीरे बरस रही है रात
रात ढल रही है । वो अपने बिस्तर में मेरी याद में करवटें बदल रही हो शायद । मैं भी क्या क्या गुमान करता रहता हूँ । रात काफ़ी ढल चुकी है । वो तो अब सो गयी होगी।
सो गयी होगी वो शफ़क़ अंदाम
सब्ज़ क़ंदील जल रही होगी ।
शायद.........