कल मीर साहब अपनी बीवी से सालन में नमक को लेकर लड़ रहे थे । लड़ाई का आग़ाज़ मीर साहब की सालन में नमक के विरोध में नारेबाज़ी से हुआ । इस पर उनकी बीवी ने महिला विरोधी कहते हुए उन्हें लताड़ने की कोशिश की । पूरी गली में शोर शराबा था । पास से गुज़र रहे रिज़्वी साहब जो कि एक लोकल चेनल के पत्रकार हैं बाइट लेने के चक्कर में दीवार से गिरते गिरते बचे ।
मीर साहब की बीवी चिल्लाईं , " तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई सालन में नमक कम बताने की ।" मीर साहब भी इधर से दहाड़े , '' अबे जब नमक कम है तो कहूँ ना ?" उधर से बीवी भी तर्क देते हुए चिल्लाईं ,'' सारा विरोध यहीं निकलता है तुम्हारा! बराबर वाले नक़वी साहब की बीवी भी तो सालन में नमक, बल्कि मिर्चें भी कम कर देती हैं । तुमने उनका तो कभी विरोध नहीं किया? सारी अभिव्यक्ति की आज़ादी मेरे ही सामने निकलती है!" "अमां क्या अहमक़ों जैसी बातें कर रही है । नक़वी साहब से मेरा क्या मतलब । मसला हमारे घर का है तो तुमसे ही तो कहूँगा ।
" हाँ हाँ ! तुम्हें तो सारी खोट मुझमें ही नज़र आती है । सब ऐब मेरे ही घर में हैं। इतना ही बुरा लगता है तो घर छोड़ के मिर्ज़ा साहब के यहाँ क्यूँ नहीं चले जाते । उनकी बीवी सालन में नमक सही डालती हैं । मीर साहब की बीवी दुपट्टे से आँसू पूछते हुए बोलीं । और सुनलो! जितनी आज़ादी तुम्हें यहाँ मिलती है मिर्ज़ा साहब के यहाँ नहीं मिलेगी , बीवी बड़बड़ाईं.।
अजीब शोर बरपा हो गया था । सब ग़लती मीर साहब की ही बता रहे थे । पड़ोस के नज़ीर साहब तोंद पे हाथ फेरते हुए बोले , मियां मीर साहब! क्या ज़रूरत थी आपको नमक की शिकायत करने की । चुपचाप सालन खा लेते ।
शकीला बाजी मीर साहब की बीवी के कान भरते हुए बोलीं, भाभी मुझे तो लग रिया है इसमें किसी बाहरी आदमी का हाथ है । उसने ही मीर साहब को तुम्हारी मुखालेफ़त करने के लिए उकसाया होगा । 'सही कह रही हो बहन, 'मीर साहब कि बीवी आँसू बहाते हुए बोलीं। कल मैंने इनका फ़ोन चेक किया था । किसी अननोन नंबर पर ढेर सारी कालें कर रखी हैं इनहोंने ।
खैर, कुछ देर के लिए मामला शांत हो गया । मीर साहब पान खाने बाहर चले गए थे ।और मैं भी किसी काम से चला गया था । मगर तनातनी अभी भी बनी हुई है ।
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