ज़िंदगी बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है । पीछे मुड़कर देखता हूँ तो कुछ धुंधले वक़्त और उनसे जुड़ी यादें ही दिखाई देती हैं । कितनी चीज़ें वक़्त के अथाह सागर में मुझसे छूट गईं । कितने लोग मुझे बिछड़ गए । उनमे से कुछ लोग ऐसे थे कि जिनसे मिलना मेरे बस में नहीं था । और न ही उनसे बिछड़ना मेरे क़ाबू में थे । कुछ ऐसे थे जिनसे मिलने और अलग होने पर मेरा बस था ।
उन लोगों से जिनसे मिलने या बिछड़ने पर मेरा इख्तेयार नहीं था , उनसे जुदा होने दुख मैंने सहा है । और अब तक सह रहा हूँ । और लगता है कि इस दुख के साथ ही आगे भी जीना होगा ।
मगर कुछ लोग ऐसे भी मुझसे जुदा हो गए जिनपर मेरा इख्तेयार था। या ये मेरा गुमान है कि मेरा इख्तेयार था। बहरहाल....
मिर्ज़ा ग़ालिब किसके पसंदीदा शायर नहीं । ख़ासकर वो लोग जो उर्दू शाएरी के बारे में कम जानते हैं उनके लिए मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू शाएरी का दूसरा नाम हैं ।शाएरी का ज़िक्र कीजे और जिस शख़्स का खयाल ज़हेन में सबसे पहले आता है वो मिर्ज़ा ग़ालिब ही हैं । ग़ालिब मुझे भी पसंद हैं । ग़ालिब के कुछ शेर बहुत मासूम और सच्चे लगते हैं और जिनका मेरी ज़िंदगी से काफ़ी हद तक तअल्लुक़ है । उनही कुछ शेरों से ये शेर भी मेरा पसंदीदा है जिसके दूसरे मिसरे को मैंने पोस्ट का टाइटल बनाया है । ये शेर इतना दर्दनाक है कि जिसका बयान नहीं । हसरत, यास, उम्मीद ये उर्दू के कुछ ऐसे लफ़्ज़ है जिनकी मिसाल दूसरी जुबानों में कम ही मिलती है । इन लफ्जों के साथ जो जज़्बात जुड़े हैं वो इंसान के बहुत आम से मगर बहुत गहरे जज़्बात है । हसरत एक ऐसा ही जज़्बा है । शेर कुछ इस तरह है ...........
घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरते तामीर सो है!
हाये!!! किसी को पा लेने की हसरत। किसी को अपना बना लेने की हसरत । किसी की मोहब्बत पाने की हसरत और न जाने कौन कौन से हसरते थीं जो इस दिल में नहीं रखीं ....
एक दिल और हसरतें क्या क्या!!!
लोग आए । लोग गए । ग़म आए । खुशी आई । कुछ लोगों से बहुत लगाव सा होने लगा था । कुछ लोगों के लिए दिल में हसरतें जागने लगी थीं । मगर वक़्त के अंधेरे थैले में से किसके हाथ क्या आता है किसी को भी ख़बर नहीं । मेरे हाथ कुछ नहीं आया । कुछ लोग मुझसे जुदा हो गए और जिनके जुदा होने का ग़म भी था । मगर इस ग़म ने मुझे ग़ारत नहीं किया । क्यूंकी.....
घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरते तामीर सो है!!
उन लोगों से जिनसे मिलने या बिछड़ने पर मेरा इख्तेयार नहीं था , उनसे जुदा होने दुख मैंने सहा है । और अब तक सह रहा हूँ । और लगता है कि इस दुख के साथ ही आगे भी जीना होगा ।
मगर कुछ लोग ऐसे भी मुझसे जुदा हो गए जिनपर मेरा इख्तेयार था। या ये मेरा गुमान है कि मेरा इख्तेयार था। बहरहाल....
मिर्ज़ा ग़ालिब किसके पसंदीदा शायर नहीं । ख़ासकर वो लोग जो उर्दू शाएरी के बारे में कम जानते हैं उनके लिए मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू शाएरी का दूसरा नाम हैं ।शाएरी का ज़िक्र कीजे और जिस शख़्स का खयाल ज़हेन में सबसे पहले आता है वो मिर्ज़ा ग़ालिब ही हैं । ग़ालिब मुझे भी पसंद हैं । ग़ालिब के कुछ शेर बहुत मासूम और सच्चे लगते हैं और जिनका मेरी ज़िंदगी से काफ़ी हद तक तअल्लुक़ है । उनही कुछ शेरों से ये शेर भी मेरा पसंदीदा है जिसके दूसरे मिसरे को मैंने पोस्ट का टाइटल बनाया है । ये शेर इतना दर्दनाक है कि जिसका बयान नहीं । हसरत, यास, उम्मीद ये उर्दू के कुछ ऐसे लफ़्ज़ है जिनकी मिसाल दूसरी जुबानों में कम ही मिलती है । इन लफ्जों के साथ जो जज़्बात जुड़े हैं वो इंसान के बहुत आम से मगर बहुत गहरे जज़्बात है । हसरत एक ऐसा ही जज़्बा है । शेर कुछ इस तरह है ...........
घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरते तामीर सो है!
हाये!!! किसी को पा लेने की हसरत। किसी को अपना बना लेने की हसरत । किसी की मोहब्बत पाने की हसरत और न जाने कौन कौन से हसरते थीं जो इस दिल में नहीं रखीं ....
एक दिल और हसरतें क्या क्या!!!
लोग आए । लोग गए । ग़म आए । खुशी आई । कुछ लोगों से बहुत लगाव सा होने लगा था । कुछ लोगों के लिए दिल में हसरतें जागने लगी थीं । मगर वक़्त के अंधेरे थैले में से किसके हाथ क्या आता है किसी को भी ख़बर नहीं । मेरे हाथ कुछ नहीं आया । कुछ लोग मुझसे जुदा हो गए और जिनके जुदा होने का ग़म भी था । मगर इस ग़म ने मुझे ग़ारत नहीं किया । क्यूंकी.....
घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरते तामीर सो है!!
कर्ब कहते हैं दुख को । बहुत ज़्यादा दुख, तकलीफ़। वो तकलीफ़ जो इंसान अपनी रूह में महसूस करता है । और जिसको लफ़्ज़ों में बयान करना बहुत मुश्किल होता ।
जौन एलिया ने बहुत ही कर्बनाक ज़िंदगी गुज़ारी है । शुरू से आख़िर तक उनकी ज़िंदगी दुख ही दुख रही है । मगर ये दुख दुनियावी चीज़ों के लिए नहीं था । ये तड़प थी अकेलेपन की तड़प, तनहाई का कर्ब । मेरे ख़याल में तनहाई को दो अलग अलग तरह से समझा और समझाया जा सकता है । आप अकेले हैं, कोई आपका दोस्त या चाहने वाला नहीं तो आप तन्हा हैं । आप के चाहने वाले हैं । आप हमेशा दोस्तों में घिरे रहते हैं मगर कोई आपको समझने वाला नहीं । कोई आपके एहसास की शिद्दत को, आपके ख़यालों को समझ नहीं पाता । तब भी आप तन्हा हैं । और ये तनहाई पहले वाली तनहाई से ज़्यादा दुख देती है । मेरे मानना है कि इंसान कि दिली चाह होती है कि उसके समझा जाये । उसे सुना जाए । उसकी बात उसके ख़यालों पर कम से कम ग़ौर ही किया जाए अगर उनसे सहमत न भी हों तो । मगर ये सब न होने पर इंसान अकेलापन महसूस करने लगता है । उसे लगता है कि कोई भी उसे समझने वाला नहीं । वो अपनी बात तो लफ़्ज़ों में अदा कर सकता है मगर अपने एहसास को लफ़्ज़ों में ज़ाहिर नहीं कर पाता। और ऐसे हालात में उसे उसकी तनहाई का बहुत गहरा एहसास होता है ।
अब जौन एलिया का वो शेर पढ़िये जिसके पहले मिसरे (पंक्ति) को मैंने टाइटिल बनाया है..............
दूसरी तनहाई वो है जिसका मैंने पहले ज़िक्र किया । कहते हैं इंसान बुनियादी तौर पर तन्हा रहने के लिए पैदा नहीं हुआ । उसने अपने वजूद में आने के कुछ वक़्त के अंदर ही गिरोह बनाकर रहना सीख लिया । और उसकी यही आदत है जो उसे अकेलेपन का एहसास कराती है । जौन ने इस चीज़ को बहुत शिद्दत से महसूस किया । उनके मुताबिक़ तनहाई इतनी तकलीफ़ देह चीज़ है कि ख़ुदा भी अपनी तनहाई को दूर करने के लिए इंसान को बनाने पर आमादा हुआ । हालांकि इस शेर के लोग अलग अलग मतलब निकलते हैं । कुछ लोगों को कहना है कि यहाँ जौन ने मेराज (इस्लामी रिवायत के मुताबिक़ पैग़ंबर साहब को ख़ुदा ने खास तौर से आसमान की सैर के लिए बुलाया था) के वाक़ये की तरफ़ इशारा किया है । मेरा मानना है कि ये मतलब सही नहीं है । मज़हब कहता है कि ख़ुदा ने इस पूरी कायनात को पैदा किया । फिर इंसान को पैदा किया । इससे पहले सिर्फ़ वो ही मौजूद था । पूरी कायनात में तन्हा और अकेला । जौन ने इसी नज़रिये की तरफ़ इशारा करते हुए तनहाई के एहसास की शिद्दत को बयान किया है । तनहाई पर इससे ज़्यादा असरदार शेर शायद ही किसी ने कहा हो । जौन ने ऊपर बयान की गयी दोनों तनहाई के दर्द को सहा है । सिर्फ़ सहा ही नहीं उसे जिया भी है ।
जौन एलिया ने बहुत ही कर्बनाक ज़िंदगी गुज़ारी है । शुरू से आख़िर तक उनकी ज़िंदगी दुख ही दुख रही है । मगर ये दुख दुनियावी चीज़ों के लिए नहीं था । ये तड़प थी अकेलेपन की तड़प, तनहाई का कर्ब । मेरे ख़याल में तनहाई को दो अलग अलग तरह से समझा और समझाया जा सकता है । आप अकेले हैं, कोई आपका दोस्त या चाहने वाला नहीं तो आप तन्हा हैं । आप के चाहने वाले हैं । आप हमेशा दोस्तों में घिरे रहते हैं मगर कोई आपको समझने वाला नहीं । कोई आपके एहसास की शिद्दत को, आपके ख़यालों को समझ नहीं पाता । तब भी आप तन्हा हैं । और ये तनहाई पहले वाली तनहाई से ज़्यादा दुख देती है । मेरे मानना है कि इंसान कि दिली चाह होती है कि उसके समझा जाये । उसे सुना जाए । उसकी बात उसके ख़यालों पर कम से कम ग़ौर ही किया जाए अगर उनसे सहमत न भी हों तो । मगर ये सब न होने पर इंसान अकेलापन महसूस करने लगता है । उसे लगता है कि कोई भी उसे समझने वाला नहीं । वो अपनी बात तो लफ़्ज़ों में अदा कर सकता है मगर अपने एहसास को लफ़्ज़ों में ज़ाहिर नहीं कर पाता। और ऐसे हालात में उसे उसकी तनहाई का बहुत गहरा एहसास होता है ।
अब जौन एलिया का वो शेर पढ़िये जिसके पहले मिसरे (पंक्ति) को मैंने टाइटिल बनाया है..............
कर्बे तनहाई है वो शै कि ख़ुदा
आदमी को पुकार उठता है !!
दूसरी तनहाई वो है जिसका मैंने पहले ज़िक्र किया । कहते हैं इंसान बुनियादी तौर पर तन्हा रहने के लिए पैदा नहीं हुआ । उसने अपने वजूद में आने के कुछ वक़्त के अंदर ही गिरोह बनाकर रहना सीख लिया । और उसकी यही आदत है जो उसे अकेलेपन का एहसास कराती है । जौन ने इस चीज़ को बहुत शिद्दत से महसूस किया । उनके मुताबिक़ तनहाई इतनी तकलीफ़ देह चीज़ है कि ख़ुदा भी अपनी तनहाई को दूर करने के लिए इंसान को बनाने पर आमादा हुआ । हालांकि इस शेर के लोग अलग अलग मतलब निकलते हैं । कुछ लोगों को कहना है कि यहाँ जौन ने मेराज (इस्लामी रिवायत के मुताबिक़ पैग़ंबर साहब को ख़ुदा ने खास तौर से आसमान की सैर के लिए बुलाया था) के वाक़ये की तरफ़ इशारा किया है । मेरा मानना है कि ये मतलब सही नहीं है । मज़हब कहता है कि ख़ुदा ने इस पूरी कायनात को पैदा किया । फिर इंसान को पैदा किया । इससे पहले सिर्फ़ वो ही मौजूद था । पूरी कायनात में तन्हा और अकेला । जौन ने इसी नज़रिये की तरफ़ इशारा करते हुए तनहाई के एहसास की शिद्दत को बयान किया है । तनहाई पर इससे ज़्यादा असरदार शेर शायद ही किसी ने कहा हो । जौन ने ऊपर बयान की गयी दोनों तनहाई के दर्द को सहा है । सिर्फ़ सहा ही नहीं उसे जिया भी है ।
जौन हम ज़िंदगी की राहों में
अपनी तनहारवी के मारे हैं !!
मुझे अक्सर कम ही लोग मुतास्सिर करते हैं । मगर जो करते है वो बहुत गहरी छाप छोडते हैं । उन्हीं चंद लोगों में से एक जौन एलिया भी हैं । मेरे क़रीबी लोग बहुत अच्छे से जानते हैं कि मेरा जौन एलिया से रिश्ता किस हद तक पहुँच चुका है । ये शिद्दत इतनी ज़्यादा हो चली है कि अक्सर जौन को लेकर मेरा मज़ाक भी बनाया जाता है । मगर मुझे इसमे ख़ुशी होती है । मेरे एक दोस्त कहते हैं कि "आप जौन के साथ "तदाकार" हो चुके हैं । अब आप ख़ुद ही समझ सकते हैं मेरी हालत ।
जौन से हज़ार मुहब्बत के बावजूद , उनके बारे मे गहराई तक जानने के बावजूद भी मैंने कभी जौन की शोहरत से फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं की.....ख़ैर
मैं लिखना तो कुछ और चाह रहा था मगर क्या लिखने लग गया । इस पोस्ट का टाइटल जौन के एक शेर का पहला मिसरा है । ये शेर मेरे पसंदीदा शेरों में से एक है । ये कुछ इस तरह है ...........
सर पीटने की घड़ी है । ग़म भी कभी फुर्सत हुआ करता है । जौन ने जितनी मासूमियत से इंसान के जज़्बात का इज़हार किया है उसकी मिसाल उर्दू शाएरी में कम ही मिलती है । यां मेरा ग़म ही मेरी फुर्सत है ........... हाय!
मगर मेरे साथ मामला और दुश्वार है । मुश्किल ये है कि मेरे पास ग़म की फुर्सत के साथ वक़्त की फुर्सत भी है। अक्सर लोगों से जब बात की जाए तो वो ये कहते हुए पाये जाते हैं कि मैं थोड़ा बिज़ी हूँ। मगर एक मुझसा खाली इंसान कि जिसके पास हमेशा सबके के लिए वक़्त होता है ।कभी किसी से नहीं कहता कि अभी बिज़ी हूँ बाद में मिलता हूँ या बात करता हूँ ।कभी कभी तो ये गुमान होता है कि मैं दुनिया का सबसे नकारा और खाली इंसान हूँ जिसके पास सबके लिए वक़्त होता है। अक्सर ये दुआ करता हूँ कि काश मैं भी इतना "बिज़ी" हो जाऊँ कि किसी से भी बात करने या मिलने की फुर्सत न हो....और मैं भी ये कह सकूँ कि...
जौन से हज़ार मुहब्बत के बावजूद , उनके बारे मे गहराई तक जानने के बावजूद भी मैंने कभी जौन की शोहरत से फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं की.....ख़ैर
मैं लिखना तो कुछ और चाह रहा था मगर क्या लिखने लग गया । इस पोस्ट का टाइटल जौन के एक शेर का पहला मिसरा है । ये शेर मेरे पसंदीदा शेरों में से एक है । ये कुछ इस तरह है ...........
"लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
यां मेरा ग़म ही मेरी फुर्सत है"
सर पीटने की घड़ी है । ग़म भी कभी फुर्सत हुआ करता है । जौन ने जितनी मासूमियत से इंसान के जज़्बात का इज़हार किया है उसकी मिसाल उर्दू शाएरी में कम ही मिलती है । यां मेरा ग़म ही मेरी फुर्सत है ........... हाय!
मगर मेरे साथ मामला और दुश्वार है । मुश्किल ये है कि मेरे पास ग़म की फुर्सत के साथ वक़्त की फुर्सत भी है। अक्सर लोगों से जब बात की जाए तो वो ये कहते हुए पाये जाते हैं कि मैं थोड़ा बिज़ी हूँ। मगर एक मुझसा खाली इंसान कि जिसके पास हमेशा सबके के लिए वक़्त होता है ।कभी किसी से नहीं कहता कि अभी बिज़ी हूँ बाद में मिलता हूँ या बात करता हूँ ।कभी कभी तो ये गुमान होता है कि मैं दुनिया का सबसे नकारा और खाली इंसान हूँ जिसके पास सबके लिए वक़्त होता है। अक्सर ये दुआ करता हूँ कि काश मैं भी इतना "बिज़ी" हो जाऊँ कि किसी से भी बात करने या मिलने की फुर्सत न हो....और मैं भी ये कह सकूँ कि...
"लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे.............."